09 January, 2015

इक बेमुरव्वत महबूब के इंतज़ार में

जब अगले दिन हैंगोवर से माथा फट रहा होता है तब जा के समझ आता है कि साला ओल्ड मौंक बहुत ही वाहियात दारू होती है. एकदम पहले प्यार कि तरह जब हमारा कोई टेस्ट नहीं था या कि कहिये कोई क्लास नहीं था...या कि एकदम ख़तम क्लास था कि कोई भी पसंद आ जाए. ओल्ड मौंक से प्यार सच्चा प्यार है. इसमें कोई मिलावट नहीं सिवाए कोक के...या फिर ज्यादा मूड या दिमाग खराब हुआ और मौसम हमारे आशिक की तरह हॉट तो कुछ आइस क्यूब्स भी डाल दिए जाएँ. ओल्ड मौंक पीना अपने अन्दर की सच्चाई से रूबरू होना है. खुद को समझाना है कि पैग के नियत डेफिनेशंस बकवास हैं. बिना पिए भी मुझे कभी मालूम नहीं चल पायेगा कि ३० मिली कितना है और पटियाला पेग कहाँ तक आएगा. तो आपको कितनी चढ़ेगी ये सिर्फ और सिर्फ उस पर डिपेंड करता है कि आपने ग्लास कैसा चुना है. अगर आप मेरी तरह थोड़े से सनकी हैं और शीशे के स्क्वायर वाले ग्लासेस में दारू पीते हैं तो आपका हिसाब फिर भी थोड़ा ठीक हो सकता है. मुझे फिफ्टी फिफ्टी लगभग पसंद आता है. मैं दारू भी कोल्ड ड्रिंक की तरह पीती हूँ. ये वाइन पीने वाले लोगों के ड्रामे कि साला ग्लास में मुश्किल से एक चौथाई वाइन है मुझे हरगिज़ पसंद नहीं आती. मेरा गिलास पूरा भरा होना चाहिए. जिंदगी की तरह.

नशा. हाँ नशा कितना चढ़ता है ये इसपर निर्भर करता है कि आप इश्क में है या नहीं. इश्क नहीं है तो ओल्ड मौंक आपकी ऐसी उतारेगा कि जिंदगी भर बोतल देखते खार खायेंगे. बचपन के सारे डर...सारी लड़कियों के ब्रेक-ऑफ जो आपने दोस्तों को बड़े शान से बताये थे कि आपने उस लड़की को छोड़ दिया...सारे खुल्ले में उभर आयेंगे. बचपन में नाइंथ स्टैण्डर्ड में जिस लड़के ने आपको भाव नहीं दिया और जिसके कारण लगता था कि जिंदगी जीने लायक नहीं है. ये सारे किस्से कुछ यूं निकलेंगे कि जिंदगी भर आपके दोस्त रुपी दुश्मन आपको चिढ़ा चिढ़ा मारेंगे. रूल हमेशा एक है. अगर आपको चढ़ी है तो दुनिया को डेफिनेटली आपसे कम चढ़ी है. और लड़कियों के साथ तो कभी दारू पीना ही मत. उनके सेंटियापे से बड़ा ज़हर कुछ नहीं होता. अब कौन ध्यान देना चाहता है कि किसने दो किलो वजन बढ़ा लिया है पिज़्ज़ा खा खा के. उस कमबख्त को आप कितना भी कह लें कि तुम बहुत हॉट हो, उसको कभी यकीन नहीं होगा. उसकी नज़रों में वो सिर्फ एक ओवरवेट लड़की है. उसको कौन बताये कि सेक्स अपील लाइज इन द ब्रेन बेबी. उस पर माया ऐन्ज्लेउ की कविताओं का असर भी नहीं पड़ेगा...फिर भी आप उसे सुनाना...कुछ लाइंस जो पार्टी में सबको अनकम्फर्टेबल कर दें...आप राइटर हो, आपका काम है अच्छी खासी हंसती खिलखिलाती पार्टी को ज़हर बना देना. सबके ऊपर आप अपने एक्सपर्ट कमेन्ट दीजिये. लेकिन इसके पहले कि हम भूल जायें कि ओल्ड मौंक और हमारे मन में कविताओं के उपजने का क्या किस्सा है..,कविता की कुछ लाइंस जो कि हर लड़की को जुबानी याद होनी चाहिए...
You may shoot me with your words,
You may cut me with your eyes,
You may kill me with your hatefulness,
But still, like air, I’ll rise.

ध्यान रखे कि ओल्ड मौंक से प्यार आपको एम्बैरस भी कर सकता है. वैसे ही जैसे पहला प्यार करता है. कि पहला प्यार आप दुनिया को दिखाने के लिए नहीं करते. पहला प्यार जब होता है आपका कोई पैमाना नहीं होता...डाल दे साकी उतनी शराब कि जितने में खुमार हो जाए...आज तुम्हारी कसम खा के कहते हैं जानम, ओल्ड मौंक इज अ नॉन प्रेटेंसीयस ड्रिंक. जिससे प्यार है उससे है यार...अब ये क्या बात हुयी कि कुंडली के लक्षण, जात और गोत्र देख के प्यार करेंगे. हो गया तो हो गया. धांय. तो उस पार्टी में सब अपने अपने ड्रिंक्स शो ऑफ कर रहे होंगे जैसे कि लड़कियां अपने बॉयफ्रेंड्स या कि वाइस वरसा. आपको अगर अपने पर यकीन है तो आप खुल्लम खुल्ला अपने ओल्ड मौंक वाली मुहब्बत का इज़हार कर सकते हैं. मगर अगर आपको ज़रा सा भी इन्फीरियोरिटी काम्प्लेक्स है तो आप किसी कमबख्त ब्लू लेबल की बीस हज़ार के प्राइस टैग के पीछे कुछ बहुत ओरिजिनल और ओथेंटिक खो रहे हैं. कुछ ऐसा कि जिसे देख कर उस खूबसूरत लड़की को आपसे प्यार होने ही वाला था. कि जब वो पूछे कि व्हाट इस योर चोइस ऑफ़ पोइजन...आप उसकी आँखों में आँखें डाल कर कह सकें...डार्लिंग इफ यू आर आस्किंग, हाउ डज ईट मैटर...आई वुड चूज यू...तुम्हारे हाथों से पानी में भी नशा होगा. मगर ये कहने के लिए जो जिगर जैसी चीज़ चाहिए उसे ओल्ड मौंक जैसी कोई वाहियात दारू ही मज़बूत कर सकती है. नफासत वाले ड्रिंक्स आपको जेंटलमैन बनायेंगे. कलेजा. सर. कलेजा. ओल्ड मौंक पचा जाने वाला. कहिये. है आपमें? तो अगर आपको ओल्ड मौंक पच जाती है...या फिर आपको ओल्ड मौंक अच्छी लगती है तो शायद आप मुझसे बात करने का कोई कॉमन ग्राउंड तलाश सकते हैं. मेरे खयाल से आपको भी ग़ालिब पसंद होंगे. और दुष्यंत. हाँ क्या? कमाल है. हम पहले क्यूँ नहीं मिले? अच्छा, आप भी इसी ठेके से हमेशा अपनी दारू खरीदते हैं. कमाल है. चलिए. मिल गए हैं तो जिंदगी लम्बी है. किसी रोज़ बैठते हैं इस सर्द मौसम में अलाव जला कर. कुछ आपके किस्से, कुछ ओल्ड मौंक और जरा सी हमारी मुहब्बत.

लाइए जाम...इस बेमुरव्वत....बेतरतीब...बेलौस और बेइंतेहा मुहब्बत के लिए चियर्स.

4 comments:

  1. आपकी एक-दो पोस्ट पहले भी पढ़ी थी. लेकिन नशा इस पोस्ट में जा के आया तो सोचा एक ठो टिप्पणी कर देते हैं. 'ओल्ड मोंक' कभी जिह्वा से स्पर्श नहीं किया (राम-राम!) मगर पोस्ट का मज़ा 'ऑन द रॉक्स' वाला ही आया है . हुआ यूँ कि १५ बरस की उमिरिया में लोटा भर भांग पी ली थी और उसका नशा आज तक उतरा नहीं. कोई सहबा, कोई सागर, कोई चश्म, कोई साकी, कोई नशा नहीं पहुंचा भांग के ऊपर तक. मगर लोग कहते हैं कि वो कोई 'एवर किलयर (Everclear) ' और कोई 'थ्री वाइज मेन' होता है ..एक बार पीने पर सब साफ़ हो जाता है. लेकिन पीने का कभी मन नहीं हुआ. रक्त अल्कोहल से संतृप्त है (मिथाइल, ईथाइल, प्रोपाएल, ब्यूटाइल सब पी रहे हैं साँसों से १५ बरस से) इसीलिये आपके साथ किसी ठेके पर नहीं मिलेंगे. हाँ ग़ालिब और दुष्यंत के दो पसंदीदा शेर आपसे कहते जायंगे. लेकिन उससे पहले हम ये कहना चाहते हैं कि आपके लिखने का शिल्प वर्तमान के लेखकों से काफी अलेहिदा है. कुछ-कुछ उसी तरह की नवीनता जो राजकमल चौधरी की कलम ने ६० के दशक में उस समय के पाठकों के लिए लायी थी. बहरहाल आपकी सुन्दर किस्सागोई से लगता है कि आप काफी अच्छी उपन्यास लिख सकती है. कुछ उस तरह की ..जिसमे ग्रामीण और शहरी दोनों 'लोकेल' हो. अगर लिखियेगा तो बताइयेगा..जेब में पैसा होगा तो खरीदेंगे. बहरहाल दो पसंदीदा शेर आपके इस पोस्ट के लिए.

    ता फिर न इन्तिज़ार में नींद आये उम्र भर
    आने का अहद कर गए जो ख्वाब में कोई
    (मिर्ज़ा असदउल्लाह खान )

    रक्त वर्षों से नसों में खौलता है
    आप कहते हैं क्षणिक उत्तेजना है
    (दुष्यंत कुमार )


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  2. सुन्दर प्रस्तुति

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  3. पूजा पिछले एक सप्ताह से मैं आपको पढ़ रहा हूँ । कॉपी भी कर रहा हूँ ,माफ़ करना बिना इजाज़त के ! दरअसल शब्दों से खेलने का हुनर नही है मुझमें । कहानी वही है 6 साल से इसी कहानी को जी रहा हूँ । किसी तक मन की अ
    बात पहुंचाने का जरिया बनी हो तुम (जबकि कायदे से आप कहना चाहिए एक 30 साल के लडके को ) । शुक्रिया मेरे दर्द को लफ्ज बक्शने के लिए ..
    इन कहानियों के किरदार शहर और वक़्त भर बदला है ।
    माफ़ करना चुराता रहूँगा शब्दों को ...

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