16 August, 2014

समंदर के सीने में एक रेगिस्तान रहता था

तुम्हें लगता है न कि समंदर का जी नहीं होता...कि उसके दिल नहीं होता...धड़कन नहीं होती...सांसें नहीं होतीं...कि समंदर सदियों से यूँ ही बेजान लहर लहर किनारे पर सर पटक रहा है...

कभी कभी समंदर की हूक किसी गीत में घुल जाती है...उसके सीने में उगते विशाल रेगिस्तान का गीत हो जाता है कोई संगीत का टुकडा...उसे सुनते हुए बदन का रेशा रेशा धूल की तरह उड़ता जाता है...बिखरता जाता है...नमक पानी की तलाश में बाँहें खोलता है कि कभी कभी रेत को भी अपने मिट्टी होने का गुमान हो जाता है...तब उसे लगता है कि खारे पानी से कोई गूंथ दे जिस्म के सारे पोरों को और गीली मिट्टी से कोई मूरत बनाये...ऐसी मूरत जिसकी आँखें हमेशा अब-डब रहे.

समंदर चीखता है उसका नाम तो दूर चाँद पर सोयी हुयी लड़की को आते हैं बुरे सपने...ज्वार भाटा उसकी नींदों में रिसने लगता है...डूबती हुई लड़की उबरने की कोशिश करती है तो उसके हाथों में आ जाती है किसी दूर की गैलेक्सी के कॉमेट की भागती रौशनी...वो उभरने की कोशिश करती है मगर ख्वाबों की ज़मीं दलदली है, उसे तेजी से गहरे खींचती है.

उसके पांवों में उलझ जाती हैं सदियों पुरानी लहरें...हर लहर में लिखा होता है उसके रकीबों का नाम...समंदर की अनगिन प्रेमिकाओं ने बोतल में भर के फेंके थे ख़त ऊंचे पानियों में...रेतीले किनारे पर बिखरे हुए टूटे हुए कांच के टुकड़े भी. लड़की के पैरों से रिसता है खून...गहरे लाल रंग से शाम का सूरज खींचता है उर्जा...ओढ़ लेता है उसके बदन का एक हिस्सा...

लड़की मगर ले नहीं सकती है समंदर का नाम कि पानी के अन्दर गहरे उसके पास बची है सिर्फ एक ही साँस...पूरी जिंदगी गुज़रती है आँखों के सामने से. दूर चाँद पर घुलती जाती है वो नमक पानी में रेशा रेशा...धरती पर समंदर का पानी जहरीला होता जाता है....जैसे जैसे उसकी सांस खींचता है समंदर वैसे वैसे उसको आने लगती है हिचकियाँ...वैसे वैसे थकने लगता है समंदर...लहरें धीमी होती जाती है...कई बार तो किनारे तक जाती ही नहीं, समंदर के सीने में ही ज़ज्ब होने लगती हैं. लड़की का श्राप लगा है समंदर को. ठहर जाने का.

एक रोज़ लड़की की आखिरी सांस अंतरिक्ष में बिखर गयी...उस रोज़ समंदर ऐसा बिखरा कि बिलकुल ही ठहर गया. सारी की सारी लहरें चुप हो गयीं. धरती पर के सारे शहर उल्काओं की पीठ चढ़ कर दूर मंगल गृह पर पलायन कर गए. समंदर की ठहरी हुयी उदासी पूरी धरती को जमाती जा रही थी. समंदर बिलकुल बंद पड़ गया था. सूरज की रौशनी वापस कर देता. किसी की हिम्मत नहीं होती थी कि लहरों को गुदगुदी करे कि समंदर को फिर से कुछ महसूस होना शुरू करे. समंदर धीरे धीरे बहुत खूंखार होता जा रहा था. वो जितना ही रोता, उसके पानी में नमक उतना ही बढ़ता...इस सान्द्र नमक से सारी मछलियों को भी तकलीफ होने लगी...उन्होंने भी आसमान में उड़ना सीख लिया...एक रोज़ उधर से गुजरती एक उल्का से उन्होंने भी लिफ्ट मांगी और दूर ठंढे गृह युरेनस पे जाने की राह निर्धारित कर ली. समंदर ने उनको रोका नहीं.

समंदर के ह्रदय में एक विशाल तूफ़ान उगने लगा...अब कोई था भी नहीं जिससे बात की जा सके...अपनी चुप्पी, अपने ठहराव से समंदर में ठंढापन आने लगा था. सूरज की किरनें आतीं तो थीं मगर समंदर उन्हें बेरंग लौटा देता था. कहीं कोई रौशनी नहीं. कोई आहट नहीं. लड़की की यादों में घुलता. मिटता. समंदर अब सिर्फ एक गहरा ताबूत हो गया था. जिसमें से किसी जीवन की आशंका बेमानी थी. एक रोज़ सूरज की किरणों ने भी अपना रास्ता बदल लिया. गहरे सियाह समंदर ने विदा कहने को अपने अन्दर का सारा प्रेम समेटा...पृथ्वी से उसकी बूँद बूँद उड़ी और सारे ग्रहों पर जरा जरा मीठे पानी की बारिश हुयी...अनगिन ग्रहों पर जीवन का अंकुर फूटा...

जहाँ खुदा का दरबार लगा था वहाँ अपराधी समंदर सर झुकाए खड़ा था...उसे प्रेम करने के जुर्म में सारे ग्रहों से निष्काषित कर दिया...मगर उसकी निर्दोष आँखें देख कर लड़की का दिल पिघल गया था. उसने दुपट्टे की एक नन्ही गाँठ खोली और समंदर की रूह को आँख की एक गीली कोर में सलामत रख लिया.

11 August, 2014

जिंदगी बीत जाती है मगर कितनी बाकी रह जाती है न?


कतरा कतरा दुस्वप्नों के तिलिस्म में फंसती, बड़ी ही खूंख्वार रात थी वो...बिस्तर की सलवटों में अजगर रेंगते...बुखार की हरारत सा बदन छटपटाता...मैं तुम्हारे नाम के मनके गिनती तो हमेशा कम पड़ जाते...ऐसे कैसे कटेगी रात...कि तुम्हारे आने में जाने कितने पहर बाकी हैं. प्यास हलक से उतरती तो पानी की हर बूँद जलाती...घबरा कर विस्की की बोतल उठाती तो याद आता कि फ्रीज़र में आइस ख़त्म है...नीट पी नहीं सकती, पानी की फितरत समझ नहीं आ रही...तो क्या अपना खून मिला कर विस्की पियूँ?

आजकल तो हिचकियों ने भी ख़त पहुँचाने बंद कर दिए हैं. तुम्हें मालूम भी होता कि तुमसे इतनी दूर इस शहर में याद कर रही हूँ तुमको? तुम्हारे आने का वादा तो कब का डिबरी की बत्ती में राख हुआ. लम्हे भर को आग चमकी थी...जैसे हुआ था इश्क तुमको. कभी सोचती हूँ तुमसे कह ही दूं वो सारी बातें जो मुझे जीने नहीं देती हैं. लम्हे भर को इश्क होता भी है क्या?

भोर उठी हूँ तो जाने किससे तो बातें करने का मन है. बहुत सारी बातें. या कि फिर एक लम्बी ड्राइव पर जाना और कुछ भी नहीं कहना. कुछ भी नहीं. जैसे एकदम चुप हो जाऊं. क्या फर्क पड़ता है कुछ भी कहने से. ऐसे कहने से न कहना बेहतर. तुम हो कहाँ मेरी जान? तुम्हारे शहर में भी बारिशें हुयीं क्या सारी रात? यहाँ तो ऐसा दर्दभरा मौसम है कि गर्म चाय से भी पिघलना मंजूर नहीं करता. तुलसी की पत्तियां तोड़ कर उबालने को रक्खी हैं...थोड़ी काली मिर्च, थोड़ी अदरक...काढ़ा पीने से शायद गले की खराश को थोड़ा आराम मिले...मेरे ख्याल से सपनों में देर तक आवाज़ देती रही हूँ तुम्हें...

तुम्हें मालूम है न मैं तुम्हें याद करती हूँ? जैसे दिल्ली के मौसम को याद करती हूँ...जैसे बर्न के अपनेपन को याद करती हूँ...जैसे अनजान देशों की गलियों में भटकते हुए कई रेस्टोरेंट्स के मेनू देखे और वहां लिखी हुयी ड्रिंक्स के नशे के बारे में सोचा. ख्यालों में अक्सर आती है कई दुपहरें जो तुमसे गप्पें मरते हुए काटी थीं...तुम्हारे ऑफिस के सीलिंग फैन की यादें भी हैं. तुम हँस रहे हो ये पढ़ कर जानती हूँ. सोचती ये भी हूँ कि तुम्हारे लायक कॉपी अब इस शहर में क्यूँ नहीं मिलती...सोचती ये भी हूँ कि तुम्हें ख़त लिखे बहुत बरस हो गए. अब भी कुछ अच्छा पढ़ती हूँ तो तुम्हें भेज देने का मन करता है. या कि कोई अच्छी फिल्म देखी तो लगता है तुम्हें देखने को कहती. जिंदगी के छोटे बड़े उत्सव तुम्हारे साथ बाँटने की ख्वाहिश अब भी बाकी है. तुम्हारे शहर के उस किले की खतरनाक मुंडेर पर पाँव झुलाते मंटो को गरियाने की ख्वाहिश भी मेरे दोस्त बाकी है. जिंदगी बीत जाती है मगर कितनी बाकी रह जाती है न?

कभी कभी सोचती हूँ तो लगता है हम एक जिगसा पजल हैं. मुझमें कितना कुछ बाकियों से आया है...जितनी बार प्यार हुआ, एक नए तरह का संगीत उसकी पहचान बनता गया...डूबते हुए हर बार किसी नए राग में सुकून तलाशा...किसी नए देश का संगीत सुना कि याद के ज़ख्म थोड़े कम टीसते थे कि संगीत में अनेस्थेटिक गुण होते हैं. वैसा ही कुछ लेखकों के साथ भी हुआ न. अगर मुझे जरा कम इश्क हुआ होता...या जरा कम दर्द हुआ होता तो मैं ऐसी नहीं होती.

वो कहता है मुझे अब बदलना चाहिए...जरा हम्बल होना चाहिए, जरा डिप्लोमेटिक. मगर मुझसे नहीं होगा. मैं ऐसी ही रही हूँ...अक्खड़, जिद्दी और इम्पल्सिव...बिना सोचे समझे कुछ भी करने वाली...बिना सोचे समझे कुछ भी बोल देने वाली. डिप्लोमेटिक होना न आया है न आएगा. जिद्दी भी बहुत हूँ. सुबह उठ कर जाने क्या क्या सोच रही हूँ. तुम होते तो इस परेशानी में कोई चिल्लर सा जोक मारते...या फिर अपनी घटिया आवाज में कोई सलमान खान का पुराना वाला गाना गा के सुनाते हमको...हम हँसते हँसते लोटपोट हो जाते और फिर अपनी किताब पर काम शुरू कर देते. जल्दी ही कहानियां फाइनल करनी हैं. कुछ नया नहीं लिख पाए हैं. अफ़सोस होता है...मगर फिर खुद को समझाते हैं. जिंदगी बहुत लम्बी है और ये मेरी आखिरी किताब नहीं होगी. अगर हुयी भी तो चैन से मर सकेंगे कि बकेट लिस्ट में बस एक ही किताब का नाम लिखे थे. बाकी तो बोनस है. कभी कभी अपने आप को जैसे हैं वैसा क़ुबूल लेना मुश्किल है...मुहब्बत तो दूर की बात है. फिर भी सुकून इतना ही है बस कि कोशिश में कमी नहीं की मैंने. अपना लिखा कभी परफेक्ट लगा ही नहीं है...न कभी लगेगा. आखिर डेडलाइन भी कोई चीज़ होती है. हाँ, जब फिल्में बनाउंगी तो वोंग कार वाई की तरह आखिरी लम्हे तक एडिट चालू रहेगा. शायद. बहुत कन्फ्यूजन है रे बाबा!

01 August, 2014

पगला गए होंगे जो ऐसा हरपट्टी किरदार सब लिखे हैं

मेरी बनायी दुनिया में आजकल हड़ताल चल रही है. मेरे सारे किरदार कहीं और चले गए हैं. कभी किसी फिल्म को देखते हुए मिलते हैं...कभी किसी किताब को पढ़ते हुए कविता की दो पंक्तियों के पीछे लुका छिपी खेलते हुए. कसम से, मैंने ऐसे गैर जिम्मेदार किरदार कहीं और नहीं देखे. जब मुझे उनकी जरूरत है तभी उनके नखरे चालू हुए बैठे हैं. बाकी किरदारों का तो चलो फिर भी समझ आता है...कौन नहीं चाहता कि उनका रोल थोड़ा लम्बा लिखा जाए मगर ऐसी टुच्ची हरकत जब कहानी के मुख्य किरदार करते हैं तो थप्पड़ मारने का मन करता है उनको...मैं आजकल बहुत वायलेंट हो गयी हूँ. किसी दिन एक ऐसी कहानी लिखनी है जिसमें सारे बस एक दूसरे की पिटाई ही करते रहें सारे वक़्त...इसका कोई ख़ास कारण न हो, बस उनका मूड खराब हो तो चालू हो जाएँ...मूड अच्छा हो तो कुटम्मस कर दें. इसी काबिल हैं ये कमबख्त. मैं खामखा इनके किरदार पर इतनी मेहनत कर रही हूँ...किसी काबिल ही नहीं हैं.

सोचो, अभी जब मुझे तुम्हारी जरूरत है तुम कहाँ फिरंट हो जी? ये कोई छुट्टी मनाने का टाइम है? मैंने कहा था न कि अगस्त तक सारी छुट्टियाँ कैंसिल...फिर ये क्या नया ड्रामा शुरू हुआ है. अरे गंगा में बाढ़ आएगी तो क्या उसमें डूब मरोगे? मैं अपनी हिरोइन के लिए फिर इतनी मेहनत करके तुम्हारा क्लोन बनाऊं...और कोई काम धंधा नहीं है मुझे...हैं...बताओ. चल देते हो टप्पर पारने. अपनाप को बड़का होशियार समझते हो. चुप चाप से सामने बैठो और हम जो डायलाग दे रहे हैं, भले आदमी की तरह बको...अगले चैप्टर में टांग तोड़ देंगे नहीं तो तुम्हारा फिर आधी किताब में पलस्तर लिए घूमते रहना, बहुत शौक़ पाले हो मैराथन दौड़ने का. मत भूलो, तुम्हारी जिंदगी में मेरे सिवा कोई और ईश्वर नहीं है...नहीं...जिस लड़की से तुम प्यार करते हो वो भी नहीं. वो भी मेरा रचा हुआ किरदार है...मेरा दिल करेगा मैं उसके प्रेम से बड़ी उसकी महत्वाकांक्षाएं रख दूँगी और वो तुम्हारी अंगूठी उतार कर पेरिस के किसी चिल्लर डिस्ट्रिक्ट में आर्ट की जरूरत समझने के लिए बैग पैक करके निकल जायेगी. तुम अपनी रेगुलर नौकरी से रिजाइन करने का सपना ही देखते रह जाना. वैसे भी तुम्हारी प्रेमिका एक जेब में रेजिग्नेशन लेटर लिए घूमती है. प्रेमपत्र बाद में लिखना सीखा उसने, रेजिग्नेशन लेटर लिखना पहले.

कौन सी किताब में पढ़ के आये हो कि मैंने तुम्हें लिखा है तो मुझे तुमसे प्यार नहीं हो सकता? पहले उस किताब में आग लगाते हैं. तुमको क्या लगता है, हीरो तुम ऐसे ही बन गए हो. अरे जिंदगी में आये बेहतरीन लोगों की विलक्षणता जरा जरा सी डाली है तुममें...तुम बस एक जिगसा पजल हो जब तक मैं तुममें प्राण नहीं फूँक देती...एक चिल्लर कोलाज. तुम्हें क्या लगता है ये जो परफ्यूम तुम लगाते हो, इस मेकर को मैंने खुद पैदा किया है? नहीं...ये उस लड़के की देहगंध से उभरा है जिसकी सूक्ष्म प्लानिंग की मैं कायल हूँ. शहर की लोड शेडिंग का सारा रूटीन उसके दिमाग में छपा रहता था...एक रोज पार्टी में कितने सारे लोग थे...सब अपनी अपनी गॉसिप में व्यस्त...इन सबके बीच ठीक दो मिनट के लिए जब लाईट गयी और जेनरेटर चालू नहीं हुआ था...उस आपाधापी और अँधेरे में उसने मुझे उतने लोगों के बावजूद बांहों में भर कर चूम लिया था...मुझे सिर्फ उसकी गंध याद रही थी...इर्द गिर्द के शोर में भोज के हर पकवान की गंध मिलीजुली थी मगर उस एक लम्हे उसके आफ्टरशेव की गंध...और उसके जाने के बाद उँगलियों में नीम्बू की गीली सी महक रह गयी थी, जैसे चाय बनाते हुए पत्तियां मसल दी हों चुटकियों में लेकर...कई बार मुझे लगता रहा था कि मुझे धोखा हुआ है...कि सरे महफ़िल मुझे चक्कर आया होगा...कि कोई इतना धीठ और इतना बहादुर नहीं हो सकता...मगर फिर मैंने उसकी ओर देखा था तो उसकी आँखों में जरा सी मेरी खुशबू बाकी दिखी थी. मुझे महसूस हुआ था कि सब कुछ सच था. मेरी कहानियों में लिखे किरदार से भी ज्यादा सच.

गुंडागर्दी कम करो, समझे...हम मूड में आ गए तो तीया पांचा कर देंगे तुम्हारा. अच्छे खासे हीरो से साइडकिक बना देंगे तुमको उठा के. सब काम तुम ही करोगे तो विलेन क्या अचार डालेगा?अपने औकात में रहो. ख़तम कैरेक्टर है जी तुमरा...लेकिन दोष किसको दें, सब तो अपने किया धरा है. सब बोल रहा था कि तुमको बेसी माथा पर नहीं चढ़ाएं लेकिन हमको तो भूत सवार था...सब कुछ तुम्हारी मर्जी का...अरे जिंदगी ऐसी नहीं होती तो कहानी ऐसे कैसे होगी. कल से अगस्त शुरू हो रहा है, समझे...चुपचाप से इमानदार हीरो की तरह साढ़े नौ बजे कागज़ पर रिपोर्ट करना. मूड अच्छा रहा तो हैप्पी एंडिंग वाली कहानी लिख देंगे. ठीक है. चलो चलो बेसी मस्का मत मारो. टेक केयर. बाय. यस आई नो यू लव मी...गुडनाईट फिर. कल मिलते हैं. लेट मत करना.

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