11 August, 2011

देर रात की कोरी चिट्ठी

बावरा मन
बावरा बन
ढूंढें किसको
जाने कैसे 

रात बाकी
दर्द हल्का
चुप कहानी
गुन रहा 

नींद छपके
चाँद बनके
आँख झीलें
डूब जा

याद लौटी
अंजुरी भर
आचमन कर
हीर गा 

भोर टटका 
राह भटका
रे मुसाफिर
लौट आ 

8 comments:

  1. उचार कर पढ़ते हुए कोष्‍ठक अनुसार शब्‍द बदल कर आसानी हुई.

    याद लौटी/अंजुली(अंजुरी)भर/आचमन कर/हीर गा

    भोर टटका/भूला(राह)भटका/रे मुसाफिर/लौट आ

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  2. sunder ...manmohak...
    bahut achchhi lagi aapki rachna.

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  3. नींद ढूढ़ लो, चैन ओढ़ लो,
    मन पागल है, बहका देगा।

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  4. rahul ji....aapke sujhav kavita kee lay to behtar karte hain...maine shabd badal diye hain...shukriya.

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  5. रे मुसाफिर लौट आ !!!

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  6. नींद छपके
    चाँद बनके
    आँख झीलें
    डूब जा



    Gazab !

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  7. बावरा बन
    ढूंढें किसको
    जाने कैसे....
    दिल मोह लिया आपकी पक्तिंयों ने...

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