24 April, 2009

बारिशें...दिल्ली, बंगलोर...बहुत कुछ और, इसी बहाने :)

बंगलोर का मौसम कुछ ऐसा है कि हर दिन आपको अपनी पहली मुहब्बत याद आती रहे (या दूसरी, तीसरी, चौथी...या हर दिन एक)। कभी पहली बारिश, तो कभी तुम्हारे साथ वाली पहली बारिश...और उसमें काफ़ी की गर्माहट।

मेरे ऑफिस की छत ग्रीन हाउस के ऊपर जैसी होती है न, वैसी है...तो जब जोर से बारिश होती है तो पानी के बूंदों का शोर बिल्कुल फुल वोलुम में बजते ब्रायन अडम्स के गीत जैसा लगता है कभी कभी "please forgive me, i can't stop loving you". खिड़कियों से मिट्टी की सोंधी महक और पानी का हल्का भीगापन महसूस होने लगता है, अजीब खुलापन सा है ऑफिस में, कभी किसी बंधन का अहसास नहीं होता।

मुझे याद है, इससे पहले का क्यूबिकल, एयर टाईट कमरे...जिनमें सब कुछ कृत्रिम था, बारिश आके चली जाए पता भी न चल पाता था। और यहाँ जैसे बारिश नृत्य करने लगती है चारो तरफ़...अपनी सीट पर बैठ कर भी उसे पूरी तरह महसूस किया जा सकता है...कुछ नहीं तो सिर्फ़ इस एक चीज़ के लिए इस ऑफिस में काम करना चाहूंगी, जिंदगी ऐसी हो कि जी जाए...ऑफिस में हम शायद जिंदगी का सबसे ज्यादा हिस्सा गुजरते हैं। क्यों न ऑफिस ऐसा हो कि जिंदगी के करीब लगे। छोटी छोटी चीज़ों से कैसी खुशी मिल सकती है इसका ख्याल रख कर ऑफिस शायद बहुत कम लोग बनाते होंगे।

आते हुए भी हलकी बूंदा बंदी हो रही थी, चश्मे पर गिरती पानी की बूँदें कितने वाक़ये याद दिला रही थी...वो तुम्हारा कहना कि धीरे चलाना, दिल्ली की बारिशें, gurgaon कि सड़कें( जहाँ तुमने बाईक से गिरा दिया था...बारिश के कारण फिसलन हो गई थी) मेरा कहना कि तुम्हारे साथ बारिश में तब तक नहीं जाउंगी जब तक हैन्डिल मेरे हाथ में न हो।

सकड़ किनारे खूब सारा पानी जमा हो गया था, जेंस को मोड़ कर घुटनों से थोड़ा नीचे ही रहने दिया था आज भी...कुछ पाटलिपुत्रा के दिन याद आ गए, जब साइकिल चला कर ऐसे ही बारिश में कोचिंग जाया करते थे। उन दिनों अगर मस्ती छोड़ कर थोडी थांग से पढ़ाई करती तो शायद आ डॉक्टर होती...पर तब कवि नहीं होती, ब्लॉगर नहीं होती...तुमसे नहीं मिलती...या शायद ये सब होता...क्या पता :)

जानती थी आज सुबह भी...कि बारिश होगी, फ़िर भी रेनकोट नहीं रखा...बारिश होती ही ऐसी है कि भीगने का मोह छोड़ नहीं पाते। कुछ कुछ वैसे ही जैसे आज भी फैब इंडिया के कुरते अच्छे लगते हैं...पर उन्हें देखकर , छू कर जेएनयू की याद इतना तड़पाने लगती है कि खरीदते नहीं है।

बरहाल...

ए जिंदगी गले लगा ले...हमने भी तेरे हर एक गम को, गले से लगाया है...है न!


PS: sorry for deleting comments, and editing the post.

23 April, 2009

ऐसे ही...रोजाना की बातें

इतने दिन बाद जाके मौका मिला था...आज इलेक्शन के कारण ऑफिस में छुट्टी है...हमने जी भर कर लिखा, और खूब लिखा। पर इस नामुराद ब्लोगेर को जाने हमसे क्या दुश्मनी थी, पोस्ट को सेव ही नहीं किया इसने...और हमारे लैपटॉप की दुःख भरी व्यथा तो आप जानते है हैं। हैंग कर गया...तो बस हमने हार्ड रिबूट कर दिया...वापस ऑन किया तो क्या पाते हैं की हमारी घंटों की मेहनत का कहीं नामो निशान नहीं है। पोस्ट गायब...जाने कौन से पाप का फल मिला है...हम तो कर्म कर रहे थे, ब्लॉगर पर भरोसा था इसलिए फल की चिंता नहीं करते थे। अब कितने सारे बैक अप बनाये एक बेचारा इंसान , यही करते रहे तो पोस्ट कब करे।

एक तो वोट नहीं कर पाये तो ऐसे ही खुन्नस हो रही है, वोटर्स लिस्ट में हमारा नाम नहीं आया...आख़िर आख़िर तक नहीं आया। अब हम इस देश को बदलें तो कैसे, खैर अगला चुनाव आएगा...तब तक शायद बन जाए। पर तब तक हम बंगलोर में रहेंगे ये भी तो पता नहीं है।

अब फ़िर से पूरी पोस्ट लिखने की हिम्मत नहीं हो रही है, तीन चार घंटों की मेहनत पर पानी फ़िर जाए तो दिल वैसे ही टूट जाता है...

आप ये गाना सुनिए। हम भी सुन कर बहला रहे थे ख़ुद को, की कुछ तो महफूज़ है...कहीं पूरा ब्लॉग ही डिलीट हो जाए तो...हम तो सोच कर ही डर गए(वैसे हमने ब्लॉग का बैक अप डाउनलोड कर रखा है :D ) महफूज़...बड़ा खूबसूरत है

Mehfuz.mp3

22 April, 2009

माँ मुझे अब भी प्यार करती है

सूना सा हो गया है आँचल मेरा
मैंने कहा था तुमसे
तुमने कुछ दुआएं डाल दीं

उन्हें गाँठ लगा कर सोयी थी
कल रात, सदियों बाद
मुझे नींद आई थी...

ख्वाब भी थे
बचपन की उजली मुस्कुराहटें भी
माँ भी कल आई थी दुलराने को

सुबह ख्वाब तो नहीं थे
पर दुपट्टे के कोने पर
माँ का आशीर्वाद था

गांठ में सिन्दूर के साथ बंधा हुआ
शायद कल माँ ने तुम्हारी मनुहार मान ली
और मुझे तुम्हें दे ही दिया...हमेशा के लिए.

19 April, 2009

मेरा नया ऑफिस :)

हमारी जिंदगी बड़े प्यार मुहब्बत से प्ले, रिवाईंड, पौस, स्टाप मोड में चल रही थी...जब तमन्ना हुयी पहुँच गए कॉलेज के दिनों में, तो कभी दिल्ली की गलियों में भटकने चले गए...हाँ कभी कभी लगता जरूर था कि बहुत दिन हुए ठहर गए हैं इस मोड़ पर। ऊपर वाले ने लगता है सुन ली...बस ऐसे ही तफरीह के लिए गए थे, और हाथ में नौकरी का ऑफर लेकर लौटे।

पिछले छः दिनों से मेरी जिंदगी एकदम फास्ट फॉरवर्ड हो रखी है। सुबहें ताजगी भरी और जोशीली होती हैं, जैसे मुझको किसी कारवां की तलाश थी अपनी मंजिल तक जाने के लिए। ऑफिस बड़ा रास आया है मुझे...यहाँ लोग बहुत अच्छे हैं, मिलनसार और खाना खिलाने को तत्पर :) मैं एक advertising एजेन्सी में काम करती हूँ, हमारा काम होता है ब्रांडिंग करना। जैसे हमें एक प्रोडक्ट को लॉन्च करना है मार्केट में, ये दक्षिण भारतीय व्यंजन विशेषज्ञ के रूप में अपने मसालों को पेश करना चाहते हैं।

मैं ठहरी ताज़ा ताज़ा दिल्ली से आई हुयी, अभी तक उन पेचदार गलियों के पराठों में खोयी हुयी हूँ...और यहाँ काम करना था बिसिबेल्ले भात को ब्रांड बनाने के लिए...अब किसी पर काम करने के लिए उसके बारे में तो कुछ जानना तो होगा...तो बस हमने हाथ खड़े कर दिए, जब तक खिलाओगे नहीं ad नहीं बनायेंगे। अगले दिन वो सज्जन व्यक्ति पूरे ऑफिस के लिए घर से बिसेबेल्ले भात बनवा कर लाया। ऐसे भले लोग जहाँ हो, काम करने में अच्छा क्यों न लगे।

इस ऑफिस का architecture मुझे सबसे अच्छा लगता है, हमारे यहाँ लिफ्ट नहीं है, पाँच मंजिला ईमारत है और ऊपर नीचे जाने के लिए घुमावदार सीढियां हैं। हमारे cubicles बाकी जगहों की तरह वर्गाकार नहीं है बल्कि पूरा ऑफिस obtuse और acute angles पर ही बना है। जैसे पहले घरों में आँगन होता था और चारो तरफ़ कमरे, उसी तरह हमारे ऑफिस के बीचोबीच खाली जगह है जिसके तीनो तरफ़ बिल्डिं खड़ी है। बहुत सारे पौधे लगे हुए हैं, बेलें लटकी हुयी हैं...छत पर एक बेहद खूबसूरत बगीचा है...गमलों वाला नहीं, मिट्टी बिछा कर लगायी हुए पौध है। एक छोटा सा उथला पानी का टैंक भी है जिसमें मछलियाँ है। यह सब इतना अच्छा लगता है कि दिमाग अपनेआप दौड़ने लगता है :) आप ख़ुद ही देख लीजिये मेरी सीट से लिया हुआ फोटो, हाँ...मेरा ऑफिस एयर कंडीशंड नहीं है, जरूरत ही नहीं।

घर से ऑफिस जाने में मुझे साढ़े तीन मिनट लगते हैं अगर रेड लाइट नहीं मिली तो...और मैं कभी ४५-५० से ऊपर नहीं चलाती। घर के बिल्कुल पास में है तो थकान भी नहीं होती आने जाने में। ऑफिस में देर रात काम करने का कल्चर नहीं है, जो एक और अच्छी बात है क्योंकि अक्सर सब जगह देखा है कि लोग १२ बजे तक ऑफिस में ही रहते हैं। हम खुशी खुशी सात बजे तक घर आ जाते हैं :)

बस इस हफ्ते थोड़ा वक्त लगा चीज़ें एडजस्ट करने में, कल से सब कुछ आराम से कर लूंगी...और तो और ब्लॉग्गिंग का टाइम भी मैंने सोच लिया है :) तो अभी के लिए...जिंदगी खूबसूरत है।

आजकल पाँव जमीं पर नहीं पड़ते मेरे...बोलो देखा है कभी तुमने मुझे, उड़ते हुए...बोलो?

10 April, 2009

सेंटी ब्लॉग पोस्ट...जुगाडू ब्लॉग्गिंग

आज हम सुबह से सेंटी हुए जा रहे हैं...वैसे तो कवि को चौबीसों घंटे सेंटी होने का हक मिला रहता है पर बाकी लोगो की तबियत का ख्याल रखना पड़ता है...तो हम जियो और जीने दो के तहत अपना सारा सेंटी दिल में दफ़न कर लेते हैं। और जब सेंटी होने का दिन आता है तो सारे गड़े मुर्दे उखाड़ कर घोर सेंटी हो जाते हैं।

बात ये है कि किसी कमबख्त ऑफिस वालों ने रिसेशन के ज़माने में भी वैकेंसी निकाल दी, हम भी बैठे ठाले मगजमारी ही कर रहे थे, अब भाई ब्लॉग्गिंग के पैसे थोड़े मिलते हैं...और जिस फ़िल्म की महान स्क्रिप्ट पर हम काम कर रहे थे उसकी एक एक डिटेल किसी को सुनाये बिना चैन ही ना पड़ता था। इस चक्कर में मुझ बेचारी का मोबाइल बिल खाने पीने से ज्यादा महंगा पड़ रहा था। तो हमने सोचा चले जाते हैं इंटरव्यू देने...किसी का दिमाग खायेंगे, थोड़ा खाने के पैसे बचेंगे। मज़े से गए और चूँकि टेंशन कुछ थी नहीं...एकदम बिंदास इंटरव्यू दे दिए...उन बेचारों को शायद हमारी शकल पसंद आ गई...सो उन्होंने अकल टेस्टिंग के लिए एक कॉपी टेस्ट थमा दिया।

ये कॉपी टेस्ट एक ऐसी बला होती है जिसकी तुलना हमें अपने ड्राइविंग लाइसेंस के लिए दिए गए रिटेन एक्साम के अलावा किसी से नहीं कर सकते हैं। कॉपी टेस्ट एक ऐसा टेस्ट होता है जो आपके दिमागी घुमक्कड़पने (पागलपंथी?)को टेस्ट करता है...और बखूबी करता है। मसलन...एक सवाल था...
"Concoct a short story (about 250 words) that starts with Neil Armstrong going on the moon mission, and ends with Mallika Sherawat kissing John F Kennedy। Other characters in the story are a goat, an umbrella, and an undertaker। "

इसका जवाब हम किसी दिन जरूर पोस्ट करेंगे ये वादा है हमारा...और जनाब ऐसे पाँच सवाल थे। सभी सवालों में ऐसी खुराफात मचाई थी हमने कि क्या बताएं, भाई बड़ा मज़ा आया था लिखने में। अब पढने वाले का क्या हाल हुआ था वो हमें नहीं मालूम...पर इसके बाद हमारा एक और राउंड हुआ इंटरव्यू का और फ़िर से तीन सवाल हल करने को दिए गए।

कॉपी टेस्ट घर लाकर करना होता है...यानि कि नींद ख़राब, खाना ख़राब...और सबसे बढ़कर ब्लॉग्गिंग की वाट लग गई, अपना तो ये हाल है कि ब्लॉगर पहले हैं इंसान बाद में तो समझ सकते हैं कि ब्लॉग्गिंग नहीं करने पर कितना गहरा अपराध बोध होता है...लगता है कोई पाप कर रहे हैं, हाय राम पोस्ट नहीं लिखी, कमेन्ट नहीं दिया, चिट्ठाचर्चा नहीं पढ़ी, ताऊ की पहेली का जवाब नहीं ढूँढा...ऐसे ही चलता रहा तो जो भगवान के दूतों ने ब्लॉग्गिंग पर डॉक्टरेट कि डिग्री दे ही वो भी कहीं निरस्त ना हो जाए। अब हम कोई दोक्टोरी पढ़े तो हैं नहीं कि भैया एक बार पढ़ लिए तो हो गए जिंदगी भर के लिए डॉक्टर...हमारा तो दिल ही बैठ जाता है मारे घबराहट के चक्कर आने लगते हैं।

तो मुए ऑफिस वालों ने हमें कह दिया कि मैडम आप आ जाईये हमें आप जैसे पागलों की ही जरूरत है...monday यानि कि १३ बड़ी शुभ तारीख है, तो आप हमारे ऑफिस को कृतार्थ कीजिये। हम तो सदमे में हैं तब से...कहाँ फ्रीलांसिंग का ऐशो आराम और कहाँ साढ़े नौ से छः बजे की खिट खिट उसमें हम ठहरे बहता पानी निर्मला...एक जगह टिक के बैठने में घोर कष्ट होता है हमें।

जले पर नमक छिड़कने को सुबह सुबह एयरटेल वालो का फ़ोन आ गया...हमारे इन्टरनेट कनेक्शन पर 15gb फ्री दे रहे थे डाऊनलोड...मानो उन्हें भी सपना आ गया हो कि हमें अब घर में नेट पर बैठने कि फुर्सत ही नहीं मिलेगी। बस ये आखिरी वार हमारी कमर तोड़ गया...हम तबसे बड़ी हसरतों से अपने लैपटॉप को देख रहे हैं।

मौका है, माहौल है, दस्तूर भी है....सेंटी हो लेते हैं। जाने कैसा होगा ऑफिस और कितनी फुर्सत मिल पाएगी....मेरे बिना अमीबा जैसे प्राणियों पर कौन पोस्ट लिखेगा...उनका उद्धार कैसे होगा। और सबसे बढ़कर मेरा मोक्ष अटक जायेगा...आप तो जानते हैं कि कलयुग में बिना ब्लॉग्गिंग के मोक्ष नहीं मिलता। शायद अगले जनम में फ़िर पोस्टिंग होगी...या हम भी भूत योनि में ही ब्लोग्गिन करने लगें, कौन जाने!

मगर हम हिम्मत नहीं हारे हैं...ब्लॉग्गिंग के गुरुओं से हम माइक्रो पोस्ट लिखना सीखेंगे...या कुछ और उपाय...आज से हम जुगाडू ब्लॉग्गिंग करेंगे। कोई ना कोई जुगाड़ तो होगा ही :)

09 April, 2009

मेरी जिंदगी का एक पन्ना

हम अंग्रेजी गाने आजकल थोड़ा कम सुन रहे हैं...वजह ये है की टीवी देखते ही नहीं हैं, तो ले दे के मेरे लैपटॉप पर जो भी पुराने नए गाने पड़े हुए हैं उन्ही से काम चलाते हैं। वैसे भी आरडी बर्मन के कुछ गाने तो ऐसे हैं की लगता है की पूरी जिंदगी सुन लूँ फ़िर भी मन नहीं भरेगा।

मैं गाने सुनती हूँ तो अक्सर एक ही गीत को बहुत देर तक सुनती हूँ, कई कई बार...और अक्सर नींद आने तक। घर पर सब परेशान हो जाते हैं मुझसे...जब थोड़ी छोटी थी तो मम्मी से इस कारण बहुत डांट खाती थी...बाकी सबका तो मन भर जाता था, पर मुझे अगर कोई गाना सुनना है तो बस...कोई लिमिट नहीं होती थी की पाँच बार सुनकर बंद कर दूंगी या ऐसा ही कुछ।

और दूसरी चीज़ होती थी, कोई गाना सुन लिया तो बस सुर चढ़ गया अब जब तक आकाश पाताल से ढूंढ कर दस बीस बार सुन न लें, खाना हज़म नहीं होता था। हमें तो प्यार भी इसी गीतों के जूनून के कारण हुआ है वरना तो हम कुणाल से कभी मिलते ही नहीं। वो भला मानुस एक ऐसे ही पागलपन में मेरे पसंद का गाना ढूंढ दिया था हमको...बस हम इम्प्रेस हो गए...काफ़ी आसान था :)

कुणाल का सबसे अच्छा दोस्त है रेड्डी...दोनों रूममेट रहे हैं...रेड्डी इतना प्यारा और अच्छा इंसान है कि यकीन नहीं होता कि आज भी ऐसी कैटेगरी के लोग होते हैं। और उसपर सुपर intelligent...अकल देने में भी भगवान ने उतनी ही दरियादिली दिखाई है जितनी शकल देने में :) ऐसा बड़ा कम होता है। इत्ता बड़ा तोप है पर बातें करो तो हवा तक नहीं लगेगी...वैसे कुणाल या उसके सारे दोस्त ऐसे ही हैं। मुझे लगता है IIT ठोक पीट के लड़कों को ये सब सिखा देता है। रेड्डी मुझे बहन मानता है...और गाहे बगाहे ख़बर लेता रहता है कि लाइफ में सब ठीक चल रहा है कि नहीं। अभी तक मिली तो नहीं हूँ उससे, सात समंदर पार जो बैठा है। मज़ा तो तब आता है जब हम बात करते हैं कि रेड्डी के लिए लड़की ढूंढनी है...उसकी पहली कैटेगरी है कि लड़की को डांस करना आना चाहिए, बाकी कैसी भी हो चलेगी :) हम सोचते हैं कि उसे कोई पसंद आ गई तो क्या करेगा...तो उसने कहा है कि सिखा देगा :)
वैसे मैं कई दिनों से उसे कह रही हूँ कि कुणाल को भी कहे कोई डांस सीख लेने को मगर यहाँ उसने भी हाथ खड़े कर दिए, लगता है कुणाल के साथ डांस करने के लिए मुझे दूसरा जनम लेना होगा ;-)

कल रेड्डी ने एक गाने का लिंक दिया...जब से सुना है दिमाग में चल रहा है...बोल इतने प्यारे और सिंपल से...और tune भी बड़ी मस्त है। मूड अच्छा हो जाए सुनकर...और प्यार तो हो ही जायेगा :)

और ये मेरी fav lines हैं...
im so glad i found you.
i love bein around you.
you make it easy,
as easy as 1 2,(1 2 3 4.)
theres only one thing two do three words four you.
i love you.
(i love you)
theres only one way two say those three words
and that's what i'll do.
i love you.
i love you

06 April, 2009

दिल ढूंढता है...फ़िर वोही फुर्सत के रात दिन...

जाने कब तक याद करती रहूंगी उस दिलरुबा दिल्ली को...कि जिसकी पेंचदार गलियों में हम उफ्फ्फ अपना दिल दे बैठे।

जिंदगी की सबसे खूबसूरत यादें किसी कैमरा में कैद नहीं हो सकती...उन्हें दिल से लगा के रखना पड़ता है...उनकी खुशबू किसी अल्फाजों के तिलिस्म में बंधने को तैयार ही नहीं होती.

मुझे जाने क्यों रात हमेशा बड़ी प्यारी और खूबसूरत लगती है...उसपर दिल्ली की वो सर्द कोहरे वाली रातें। इंडिया गेट पर दोस्तों के साथ देर रात बैठ कर अपने स्कूल या कॉलेज के किस्से बयान करना...आहा वो काला खट्टा वाला बर्फ का गोला खाना, उफ़ वो स्वाद भला मैक डी के आइसक्रीम में आएगा कभी। बैलून खरीद कर सबके साथ खेलना, मारा पीटी करना...रेस लगाना और वो टूटे फूटे गानों के साथ अन्त्याक्षरी खेलना...वो गाने जो किसी फ़िल्म के नहीं, वो बोल जो किसी गीतकार ने नहीं लिखे...वो चाँद गाने जो दिल की धड़कनों से उठते थे...वो खोये हुए बोल...वो गुमी हुयी धुनें।

रास्ते भर कार में बजती वो गजलें या कोई शोर शराबा सा पंजाबी गीत...और हाँ उन दिनों...तारे ज़मीन पर का गाना कितना सुना था...तू धूप है...छम से बिखर, तू है नदी ओ बेखबर...अब भी कहीं भी ये गाना बजते सुनती हूँ तो मन उसी nh8 पर पहुँच जाता है। कमबख्त ये दिल्ली पीछा छोड़ती ही नहीं, कहीं भी जाओ।

वो दिन जब आधे दोस्तों की प्रेमकहानी में कोई ना कोई ट्विस्ट चल रहा था, और हम सब मिल कर उपाय ढूंढते रहते थे...वो दिन जब दोस्ती सबसे कीमती चीज़ होती थी दुनिया में और वो चंद लम्हे दिन भर की थकान उतारने का सबब।

पंख लगा के उड़ने वाले वो दिन...जब जिंदगी का नशा हुआ करता था और खुशियाँ सर चढ़ कर बोलती थीं...जब किसी की एक नज़र का खुमार हफ्तों नहीं उतरता था...जब आइना किसी भी हालात में आपपर मुस्कुराता था...जब कुछ भी पहन लो आखों में खिलखिलाहट होती थी।

उफ्फ्फ्फ्फ्फ

दिल्ली तेरी गलियों का...वो इश्क याद आता है

01 April, 2009

अप्रैल फूल कैसे बने?

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ऐसे :D

अब आप हमें गरिया लें...क्या कीजियेगा...भाई हमें तो यही सीधे साधे वाले अप्रैल फूल बनाने में मज़ा आता है.

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