19 August, 2008

अब सवाल नहीं

ना पूरे होने वाले सपने भी तो देखती हूँ मैं
अनजाने...
सफ़ेद बादलों के बीच उड़ते हुए...
खूब सारी धूप और खिलखिलाहटों सा
इन्द्रधनुषी किरणों का

और नींद में ही मुस्कुराती हूँ
हाथ बढ़ा कर छूना चाहती हूँ
बर्फ के उस सफ़ेद नर्म गोले को...
उससे शायद एक घर बनाना चाहती हूँ

बर्फ का घर जिसमे अलाव जल रहा हो
खिड़कियों पे टंगे हो नीले परदे
खरगोश दौड़ रहे हों आसपास
और नन्ही नन्ही परियां हो

वहां कोई रोये ना
आंसू निकलते ही जम के आइसक्रीम बन जाएँ
छोटी छोटी घंटियाँ बजती रहे
और हाँ एक जलतरंग भी

जहाँ थिरकते फव्वारे हों
हवा में उड़ते फूल हों

सपने...ऐसे ही नहीं होते
ऐसे भी होते हैं

जहाँ मुझे कुछ भी करने के पहले
हर किसी को जवाब न देना पड़े
एक ऐसी भी जगह होती
जहाँ सवालों के कटघरे न होते

जहाँ मैं राजकुमारी होती
और मेरी हर ख्वाहिश यूँ ही पूरी होती
जहाँ तर्क नहीं होते
जहाँ गम नहीं होता
जहाँ समझौता नहीं करना पड़ता...

काश
ऐसी जगह होती
जहाँ मैं...बस मैं होती



14 comments:

  1. sapne...aise hi nahi hote aise bhi hote hain. sapne aise hi hone chahiye,aapke har sapne pure hon,

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  2. काश
    ऐसी जगह होती
    जहाँ मैं...बस मैं होती
    और साथ में होते आपके सपने..

    आमीन.... :)

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  3. बहुत खूब.
    बेहतरीन..... उम्दा....
    पढ़कर आनंद आ गया.
    आभार.
    ऐसी जगह मैं भी जाना चाहूँगा कुछ लोगों के साथ. :)

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  4. और नींद में ही मुस्कुराती हूँ
    हाथ बढ़ा कर छूना चाहती हूँ
    बर्फ के उस सफ़ेद नर्म गोले को...
    उससे शायद एक घर बनाना चाहती हूँ

    खूबसूरत.

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  5. जहाँ मुझे कुछ भी करने के पहले
    हर किसी को जवाब न देना पड़े
    एक ऐसी भी जगह होती
    जहाँ सवालों के कटघरे न होते।

    सुन्दर कल्पना है।

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  6. जहाँ मैं राजकुमारी होती
    और मेरी हर ख्वाहिश यूँ ही पूरी होती
    जहाँ तर्क नहीं होते
    जहाँ गम नहीं होता
    जहाँ समझौता नहीं करना पड़ता...
    बहुत सुन्दर लिखा है। पढ़कर आनन्द आगया। बधाई स्वीकारें।

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  7. बहुत ही सुंदर.
    आभार.

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  8. आपका ब्लोग पहली बार देखा और पसँद आया आपका लिखा हुआ भी -
    - लावण्या

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  9. बहुत ही प्यारी भावनायें हैं......पढ़कर अच्छा लगा...पर सपने सच ही नहीं होते...चुभते क्यों हैं ये शीशमहल...टूटे हुए से?

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  10. सपने सच भी होते हैं

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