06 July, 2008

रिश्ता...

एक पल को तो लगा
तुम कहोगे
तुम मेरे साथ कुछ वक्त बिताना चाहते हो...

सिर्फ़ इस चाहने से ही
दर्द सा कुछ टीस उठा मेरे अन्दर

ऐसा क्यों होता है
कि सिर्फ़ मैं चाहती हूँ
गुज़रे दिनों जैसे कुछ लम्हे
अब भी...

रिश्तों के नाम बदलने के साथ ही
बदल जाते हैं हमारे तुम्हारे समीकरण भी

और हर गुजरते दिन के साथ
मैं और तनहा होती जाती हूँ

मुझे अच्छे लगते हैं वो दिन
जब हमारे रिश्ते का नाम नहीं था

क्योंकि तब बहुत कुछ चाहती नहीं थी तुमसे
अब चाहने लगी हूँ

तुमसे कुछ उम्मीदें जुड़ गई हैं
और इनका टूटना
मुझे तोड़ने लगता है

तुम तब कहीं ज्यादा अपने थे
जब तुम मेरे कोई नहीं थे

वो रिश्ता कहीं ज्यादा मजबूत था
जो बना ही नहीं था

5 comments:

  1. ऐसा क्यों होता है
    कि सिर्फ़ मैं चाहती हूँ
    .....



    और हर गुजरते दिन के साथ
    मैं और तनहा होती जाती हूँ
    .................
    मुझे अच्छे लगते हैं वो दिन
    जब हमारे रिश्ते का नाम नहीं था



    तभी तो मै कहता हूँ एक भावुक लड़की जो अच्छी कविता कहती है......कुछ शब्दों को यूँ ही छोड़ दिया करो बिना explain किये,वे अपने आप सब कह देते है.......you touch my heart...

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  2. तुम तब कहीं ज्यादा अपने थे
    जब तुम मेरे कोई नहीं थे

    वो रिश्ता कहीं ज्यादा मजबूत था
    जो बना ही नहीं था


    Wah!! habut khoob...

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  3. तुम तब कहीं ज्यादा अपने थे
    जब तुम मेरे कोई नहीं थे

    वो रिश्ता कहीं ज्यादा मजबूत था
    जो बना ही नहीं था
    shayad sahi hi hai,jab rishta na tha tab sab apna tha,aaj rishta apna hai,baki kuch nahi,bahut sundar bhav

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  4. Kabhi Kabhi Dukh aur dukh ka ehsaas itna madak hota hai kee... Insaan uski chaah Rakhne Lagta hai. Boond Boond Vish ko chatkaare le kar peene Lagta hai.

    Lekin Vish to Vish hee Hai..... Nasht Karna Uski Fidrat hai

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  5. एक बात रखी है
    सिरहाने में
    एक साथ
    मेरे जी जाने में
    याद नहीं
    कब साथ मरा
    अब याद छलकती है
    पैमानों में
    आपकी कविता के लिए यह एक छोटी सी कोशिश मेरी तरफ़ से भी

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