05 June, 2008

मम्मी भूख लगी है

मम्मी भूख लगी है, लेट हो रहे हैं कॉलेज को
मम्मी...मम्मी...
आज बिना खाए चले जाएँगे
देर हो गई है बहुत

नहीं नहीं एक रोटी खा लो,
और कौर कौर कर के खिला देती माँ
एक एक कर के तीन रोटियाँ

याद है...
घर से निकलते हुए भी
एक कौर मुंह में डाल देती वो

अब अक्सर बिना खाए चली जाती हूँ
ज्यादा फर्क नहीं पड़ता
पर जब भूख लगती है
तुम्हारी बहुत याद आती है माँ...

तुमसे अच्छा खाना खाया है कई जगह
कहीं पर बिल्कुल ख़राब खाना भी खाया है
लेकिन तुम्हारे हाथ का खाना नहीं खाया है

जब से तुम गई हो
कुछ भी खा लेती हूँ
मन नहीं भरता
भूख नहीं जाती
प्यास नहीं जाती

तुम्हारे हाथों का खाना चाहिए
मुझे भूख लगी है मम्मी
मम्मी मम्मी...

10 comments:

  1. क्यों रूलाना चाह रहीं हैं??

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  2. एक कौर जो जन्मो की भूख मिटा दे.. बहुत खूबसूरत क्योंकि माँ पे लिखा है आपने..

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  3. एक कौर जो जन्मो की भूख मिटा दे.. बहुत खूबसूरत क्योंकि माँ पे लिखा है आपने..

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  4. कुछ नही कह पा रहा हूँ...बस अपना ध्यान रखे....

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  5. भूख लगी है माँ ..बहुत ही भावुक कर देने वाली कविता ..

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  6. pooja ji rula hi diya aapne,bahut bhavuk kavita,sundar

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  7. भावुक कर देने वाली कविता

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  8. सच है !
    स्मृतियाँ इतना ही विह्वल कर देतीं है.

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  9. मेरी बेटी भी कहती है मम्मा मुहँ मे हाथ डाल कर रसोई की तरफ इशारा करके(भुख लगी है)
    भावुक करती है यह रचना। अति अति....... सुन्दर।

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